ईश्वर की सुंदर कृति
मातृ रूप परिभाषित
जगज्जननी पर्याय
क्यों दुखिता रह जाती हो ?
यदा-यदा अत्याचार विरुद्ध
रौद्र रूप में हुई कटिबद्ध
दुर्गा, काली, रुप में आती हो
क्यों अबला कहलाती हो ?
जिसने ही धरा पर अनेक नेक उत्कृष्ट
राम, मुहम्मद, यीशु, नानक, आज़ाद, भगत
गांधी, विवेकानंद युगपुरुष जनती
क्यों तुम दूषित की जाती हो ?
दादी, माता, नानी, दीदी, पत्नी, भगिनी
रिश्तों की एक कुल बनाकर जग रची
अपनी ममता की आँचल से ढकती,
क्यों अग्नि परीक्षा से गुजरती हो ?
जिस माँ के आँचल में पल, चलना सीखा
कोई गीत नहीं मीठा, माँ की लोरी सरीखा
संतति के भव जीवन, सुहाना स्वप्न सजोती हो
क्यों तुम चीख-चीख रोती हो ?
जो तेरे दामन को दूषित कर, समझा नर्तकी, तबला
उठा लो खड्ग, बन जाओ हिम्मत की ज्वाला
जब झाँसी की रानी रुप में आती हो
महिषासुर का शीष चरणों में पाती हो II
श्रद्धा से-
अविनाश कुमार राव