क्या खूब वक्त आया है
परिवर्तन, विकास प्रगति का
जिधर देखो उधर ही परिवर्तन
कालिख बरतन का परिवर्तन,
जैसे सठियाए बॉलीबुड का
रीमिक्स परिवर्तन।
धूम मची है, खूब मची है धूम
नाम बदलाव की धूम
अपने पूर्वज का नाम बदला जाय
परिवर्नतन नदी में
कौआ-स्नान किया जाय
शायद विकास हो जाय
किसी को गोद ले
अपना तोंद भरता है विकास बोलता है I
आओ चले आओ
बिना गार्ड वाले सियासत के कमरे में
दूषित खद्दर पहन कर आओ
पहरेदार बन जाओ
निर्बलों की कर ह्त्या
लूटकर आबरू किसी की
सत्ता में घुस जाओ
किसी के सपनों से खेलकर
अपना साथ अपना विकास करता है
विकास बोलता है I
दोगुनी चहू ओर विकास
कर्दम का नहीं है निकास
पैरोकारों की मेधा रिक्त है या गोबड़ से अभिषिक्त
अब कोई योजना नहीं बची है
पंचर पथ की राह गढ़ता है
विकास बोलता है।
झूठ के पहिए पर चलकर
जैसे नशेड़ी जमीं बेचता है
घर बेचता है
नाली में पड़े
जमीं को प्रगति बोलता है
जिल्द बदलने को
विकास बोलता है।
— श्रद्धा से
अविनाश कुमार राव
शिक्षक: हिंदी, संस्कृत
डी. पी. एस. फुलवारी
📅 तिथि: 15.08.2021
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