एक रात जब
अँधेरे में ढिबरी जलाया
खिड़की से चाँद को झाँकते पाया,
बादलों से निकलते, छिपते
शायद मुझे चिढ़ा रहा था
मुझे नहीं मालुम या बुला रहा था,
पर मैं खुश था
अपनी ढिबरी की रोशनी से,
यह वही दीपक है
जो ज्ञान की बाती जलाई
गूढ़ विषयों को बताई,
जब भी आया तम का छाया
हमेशा अपने साथ यह दीपक ही पाया,
जिसका सपना चाँद पर जाने का है
जाने का रास्ता दीपक ने ही दिखाया I
श्रद्धा से –
अविनाश कुमार राव


