भटकाव

bhatkaav naatak ke lie drishy

आजकल युवाओं में लक्ष्य के प्रति निश्चितता नहीं दिखाई देती है क्योंकि सोसल मीडिया उन्हें इतने सारे रास्ते दे दिया कि उन्हें समझ नहीं आता कि कौन-सा लक्ष्य उनके लिए सही है I उन्हें भटकने पर मजबूर कर दिया है I ऐसी ही समस्या को लेकर यह नाटक ‘भटकाव’ नाटक देश में फैले भ्रष्टाचार पर व्यंग्य है और जवानों में लक्ष्य के प्रति ‘भटकाव’ को दर्शाता है I उन्हें अपने लक्ष्य के प्रति अर्जुन की तरह दृष्टि रखने की प्रेरणा और सजग करता है I आइए इस नाटक को पढ़ते हैं…

पात्र-

राजीव
अमित
बलबीर
कार्तिक
कक्षा के और छात्र
अयाना
सुब्रतराज (राजीव के पिता)
डॉक्टर
नवीन
संवाददाता
शालिनी(राजीव की माँ)

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