नाटक 2 : जय श्री राम

'जय श्री राम' नाटक के लिए चित्र

दृश्य : तीन(मित्रों का साथ और सहयोग)
(सभी मित्र बताए गए होटल पर एकत्र होते हैंI)
रामू: ऐ चपडगंजुओं, क्या किया जाय ? हर बार सबसे पहले आने वाला इस बार नहीं आया I
अजय: हाँ, इस तरह तो कभी नहीं किया है और मैसेज में कुछ दिक्कत शब्द का प्रयोग किया है I
संजय: जय श्री राम! हाँ, जरूर किसी बड़े दिक्कत में है I अब हमलोग भोजन भी नहींकरेंगें I चलो अब जय के घर चला जाय I इस समय उसकी दिक्कत को जानना जरूरी है I
रामू: महाभारत के संजय जी, सही कह रहे हो, चलो I
(जय के घर पहुँच जाते हैं I घंटी बजाते हैं)
जय: (दरवाजा खोलते हुए) क्यों, यहाँ क्यों ?
रामू: हाँ भाई, मानता हूँ प्रबंधक हो I तुम बहुत होशियार हो, पर दिक्कत कैसे अकेले हल करोगे ? हम भी सीखना चाहते हैं I
संजय: जय श्री राम! जय, दिक्कत तो तुम्हारा चेहरा ही बयाँ हो रहा है I बताओ क्या दिक्कत है ?
(जय सारी बात बताता है )
अजय: जय, तो तुम यहाँ से दूसरे शहर चले जाओ I वह बहुत बड़ा गुंडा है I
रामू: तुम अजय नहीं हो तुम्हारा नाम पराजय रखना चाहिए था I वह लड़का अगर तुम्हारा किडनैप हुआ होता तो ?
संजय: जय श्री राम, इसीलिए तो मैं किसी से भी हमेशा बात करने से पहले ‘जय श्री राम’ बोलता हूँ बोलता हूँ I “राम एक भगवान नहीं एक विचार है, विचार है तो विश्वास है और विश्वास है तो विजय I”  हम लड़ेंगे, जरूर लड़ेंगे और जीतेंगे भी I  
(अब सबके अंदर एक ऊर्जा का संचार होता है I)

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