नाटक 2 : जय श्री राम

'जय श्री राम' नाटक के लिए चित्र

दृश्य : चार(जीत की तैयारी)
जूही: (कालानाग को फोन पर बात करते हुए कहती है, थोड़े घबड़ाए हुए स्वर में ) हेलो, सर, मैं जूही बोल रही हूँ हाँ बोल क्या बात है ? सर, कल अचानक मेरे पति                      
की तबियत बहुत खराब हो गई और डॉक्टर ने एक लाख तिरपन हजार माँगा है I आपने मुझे कुछ पैसे देने के लिए बोला था I केवल मुझे आप एक लाख रुपये भिजवा दीजिए I बाकी मैं व्यवस्था कर लूँगी I बहुत भला होगा I   
कालानाग: कहो तो डॉक्टर से बोल दूँ I एक भी पैसा नहीं लेगा I
जूही: नहीं सर, मैं अपने पति की जान चाहती हूँ I मेरा पति मुझे कैसे भी चाहिए I
कालानाग: ठीक है I एड्रेस बताओ कहाँ लोगी ?
जूही: मोटू गली, ढोलक चौराहा, नया, बाजार I
कालानाग: पर तुम्हें हम पहचानेंगे कैसे ?
जूही: ढोलक चौराहे पर न्यू बुक सेलर के के सामने एक लाल रंग का गिफ्ट पैक बाएँ हाथ में ली रहूँगी I गिफ्ट लेना, पैसे देना और चले जाना I
कालानाग: ठीक है, पर कोई धोखा हुआ, तो इस बार तुम्हारा पति टँग जाएगा I
जूही: नहीं सर, ऐसा क्यों करूँगी ? मुझे अपने पति की जान प्यारी है ?
कालानाग: ठीक है I(एक लाख रुपये लेकर पहुँचता है I) ज्यों ही गिफ्ट लेने के लिए हाथ बढ़ाता है, पुलिस उसके हाथों में हथकड़ी पहना देती है I रामू के सभी दोस्त पुलिस के पास ‘जय श्री राम’ बोलकर राहत की साँस लेते हैं I
                                                   
(पर्दा गिरता है I)

सन्देश:

इस ‘जय श्री राम’ नाटक से यह शिक्षा मिलती है कि किसी न किसी रुप में हं राम राम का नाम लेते रहना चाहिए और मित्रता जरूर रखनी चाहिए I
 
 श्रद्धा से –
अविनाश कुमार राव    

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