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नाटक 2 : जय श्री राम

'जय श्री राम' नाटक के लिए चित्र

ॐ नमः शिवाय
नाटक: 2
शीर्षक: जय श्री राम

पात्र  
मित्र                        – रामू, अजय, संजय, जय
कालानाग                – (खलनायक)
जूही                       – जय की पत्नी
जय के माता-पिता    –
दो गुंडे                    –
एक बच्चा                –

इस ‘जय श्री राम’ नाटक यह बताता है कि विपत्तियाँ कैसे बिन बताए आ जाती हैं लेकिन ईश्वर पर विश्वास रखने पर किसी न किसी माध्यम से हमारे संकटों को दूर कर दिया जाता है | मित्रता हमारे जीवन कितनी आवश्यक है |

दृश्य : एक (मित्रों का मिलना)
रामू: (अपने दोस्तों के ग्रुप में मोबाइल पर व्हाट्स एप में चैटिंग करते हुए) अबे चपड़गंजुओं, सालों बीत गए, हम लोग अपनी चाय की दूकान पर नहीं मिले I
संजय: जय श्री राम! बिलकुल सही रामू जी I सही कह रहे हो I इस बार हम कहीं भोजन के लिए मिलता हैं I
अजय: केवल तुम्हीं दोनों लोग नहीं रहोगे I मैं भी तुम लोगों के हिस्से में से खाऊँगा |
रामू: अबे, नारियल के खोपड़ी ! आओ ना, कौन तुम्हें रोकेगा ? क्योंकि बिल तो तुम्हीं देते हो ? जय! तू कुछ बोल नहीं रहा है ? क्यों भाई ? पर तुमको भी आना होगा I गाना कौन गाएगा ?
जय: (लम्बी साँस लेते हुए, कुछ रूककर )ठीक है… देखता हूँ, समय मिलेगा तो जरुर आऊँगा I
(जय अपने काम से शहर के एक मॉल में एक मैनेजर के रूप में काम पर चला जाता है I)
जूही: (जय की पत्नी स्कूल जाते हुए कुछ गुंडों के द्वारा एक किसी बच्चे को अगवा कर लिया जाता है जिसे देख लेती है, और सरपट तेजी से चल रही है जैसे इसने देखा न हो I)
कालानाग: (जूही को फोन करते हुए) ओ बबुनी ! तुमने कुछ देखा क्या, स्कूल से आते समय  आज ?
जूही  – हाँ,
कालानाग: तो जैसे अब तक चुप थी वैसे ही चुप रहना है I तो बता, अपनी चुप्पी के कितने पैसे लेगी ? पैसे लेगी या गोली ?
जूही: नहीं, नहीं… सर, कुछ नहीं बोलूँगी |
कालानाग: हाँ, ये है होशियारी की बात I तुम तो बहुत समझदार औरत जान पड़ती हो I

दृश्य : दो(घर में चिंता)
जय: (साम को थका हुआ अपने दरवाजे पर घंटी बजाते हुए ) अरे, जल्दी खोलो ना दरवाजा I
जूही: (दरवाजा खोलते ही, अपने पति के सामने रोने लगती है औरन काँपते हुए सारी घटना बताती है) मुझे बहुत घबड़ड़ाहट हो रही है I मैं क्या करूँ ?
जय : घबराओ नहीं I मैं हूँ I मम्मी, पापा हैं I सबसे बड़ी बात है ईश्वर पर भरोसा रखो, सब ठीक हो जाएगा I
जूही: बच्चे ने मुझे देखा है ले जाते हुए I मुझे चिंता हो रही है कि बच्चे को कहीं वे लोग मार न दें I
जय: जब तुम कहीं कुछ कहोगी तब तो कुछ होगा I बहुत दिनों बाद आज मुझे अपने मित्रों के साथ बात करनी है I
जय: (समस्या को देखते हुए अपने मित्रों को चैटिंग में एन वक्त पर भोजन पर जाने से मना करता है I) कुछ अचानक दिक्कत आ गई है इसलिए नहीं आ पा रहा हूँ I

दृश्य : तीन(मित्रों का साथ और सहयोग)
(सभी मित्र बताए गए होटल पर एकत्र होते हैंI)
रामू: ऐ चपडगंजुओं, क्या किया जाय ? हर बार सबसे पहले आने वाला इस बार नहीं आया I
अजय: हाँ, इस तरह तो कभी नहीं किया है और मैसेज में कुछ दिक्कत शब्द का प्रयोग किया है I
संजय: जय श्री राम! हाँ, जरूर किसी बड़े दिक्कत में है I अब हमलोग भोजन भी नहींकरेंगें I चलो अब जय के घर चला जाय I इस समय उसकी दिक्कत को जानना जरूरी है I
रामू: महाभारत के संजय जी, सही कह रहे हो, चलो I
(जय के घर पहुँच जाते हैं I घंटी बजाते हैं)
जय: (दरवाजा खोलते हुए) क्यों, यहाँ क्यों ?
रामू: हाँ भाई, मानता हूँ प्रबंधक हो I तुम बहुत होशियार हो, पर दिक्कत कैसे अकेले हल करोगे ? हम भी सीखना चाहते हैं I
संजय: जय श्री राम! जय, दिक्कत तो तुम्हारा चेहरा ही बयाँ हो रहा है I बताओ क्या दिक्कत है ?
(जय सारी बात बताता है )
अजय: जय, तो तुम यहाँ से दूसरे शहर चले जाओ I वह बहुत बड़ा गुंडा है I
रामू: तुम अजय नहीं हो तुम्हारा नाम पराजय रखना चाहिए था I वह लड़का अगर तुम्हारा किडनैप हुआ होता तो ?
संजय: जय श्री राम, इसीलिए तो मैं किसी से भी हमेशा बात करने से पहले ‘जय श्री राम’ बोलता हूँ बोलता हूँ I “राम एक भगवान नहीं एक विचार है, विचार है तो विश्वास है और विश्वास है तो विजय I”  हम लड़ेंगे, जरूर लड़ेंगे और जीतेंगे भी I  
(अब सबके अंदर एक ऊर्जा का संचार होता है I)

दृश्य : चार(जीत की तैयारी)
जूही: (कालानाग को फोन पर बात करते हुए कहती है, थोड़े घबड़ाए हुए स्वर में ) हेलो, सर, मैं जूही बोल रही हूँ हाँ बोल क्या बात है ? सर, कल अचानक मेरे पति                      
की तबियत बहुत खराब हो गई और डॉक्टर ने एक लाख तिरपन हजार माँगा है I आपने मुझे कुछ पैसे देने के लिए बोला था I केवल मुझे आप एक लाख रुपये भिजवा दीजिए I बाकी मैं व्यवस्था कर लूँगी I बहुत भला होगा I   
कालानाग: कहो तो डॉक्टर से बोल दूँ I एक भी पैसा नहीं लेगा I
जूही: नहीं सर, मैं अपने पति की जान चाहती हूँ I मेरा पति मुझे कैसे भी चाहिए I
कालानाग: ठीक है I एड्रेस बताओ कहाँ लोगी ?
जूही: मोटू गली, ढोलक चौराहा, नया, बाजार I
कालानाग: पर तुम्हें हम पहचानेंगे कैसे ?
जूही: ढोलक चौराहे पर न्यू बुक सेलर के के सामने एक लाल रंग का गिफ्ट पैक बाएँ हाथ में ली रहूँगी I गिफ्ट लेना, पैसे देना और चले जाना I
कालानाग: ठीक है, पर कोई धोखा हुआ, तो इस बार तुम्हारा पति टँग जाएगा I
जूही: नहीं सर, ऐसा क्यों करूँगी ? मुझे अपने पति की जान प्यारी है ?
कालानाग: ठीक है I(एक लाख रुपये लेकर पहुँचता है I) ज्यों ही गिफ्ट लेने के लिए हाथ बढ़ाता है, पुलिस उसके हाथों में हथकड़ी पहना देती है I रामू के सभी दोस्त पुलिस के पास ‘जय श्री राम’ बोलकर राहत की साँस लेते हैं I
                                                   
(पर्दा गिरता है I)

सन्देश:

इस ‘जय श्री राम’ नाटक से यह शिक्षा मिलती है कि किसी न किसी रुप में हं राम राम का नाम लेते रहना चाहिए और मित्रता जरूर रखनी चाहिए I
 
 श्रद्धा से –
अविनाश कुमार राव    

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