जूते – एक अनुभव की कविता

पहने जाते हैं 
बड़े उत्साह से
नये जूते,
किसी के लिए
निचले स्तर की
रौंदने की
चीज हैं जूते,
हमारे पैरों को
बचाते हैं
कील, कीट, कीड़े, कीचड़ से
फिर भी तुच्छ समझे जाते हैं जूते,
हिमालय पर
चढ़ने वालों से पूछिए
कितने गम
दबाए हैं जूते,
हर पग
पथ पर,
साक्षी अनुभवों का
ठोकरें खाकर आगे बढ़ने की सीख हैं जूतें,
चापलूसों की उपमा
क्रोध की सीमा
लाँघकर किसी के ऊपर
उछल जाने से बदनाम हैं जूते,
उपानह् से सूज तक
इतिहास,
गीले सूखे मौसम के भूगोल,
मिट्टी, कंकड़, पत्थर से होकर देश बनाते हैं जूते,
ऊँच-नीच,
धनी-निर्धन
झेले हैं कितने संघर्ष
हर उम्र का पैमाना लिए हैं जूते ||

श्रद्धा से -
अविनाश कुमार राव

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