जहाँ एक है सूरज-चाँद का खेलअनोखा अनुपम प्रभा का मेल,हमजोली के आभा का खेललोकालोक दोनों का लक्ष्य एक,पर यहाँ मानव का वैचारिक भेदरोती होगी माँ धरती, आँचल अपनी फटती देख |थे जन्म समय सब में एक रक्त रंगखाया सबने एक ही अन्नएक प्रकृति में पले बढ़े,एक ईश्वर के कर नाम भेद हो धर्म नाम पर बटे …