
ये जो शाम है
कुछ तो ख़ास है
मीठे अहसास हैं
कह रहे अल्फ़ाज हैं I
कलकल झरनों की नाद है
ये वादियाँ, ये हवाएँ साथ हैं
क्षितीज की लालिमा के
मिलन से आ रही आवाज़ है I
पूरा अपना आसमां है
वक्त भी कितना मेहरबां है
करने दो आँखों से आँखें चार
क्योंकि सामने जो मेरा चाँद है I
क्या ख़ूब हसीं शाम है
रूह की एक ही अरमान है ?
तू ही जीवन की गान है
हर पल चलना तेरे साथ है I
श्रद्धा से-
अविनाश कुमार राव