जग की आत्मा प्रकृति रचयिता सर्वत्र व्याप्त मैं निर्मल एक बूँद हूँ II पपीहे की प्यास बुझाती, बाँस को बंसलोचन बनाती फसलों में फली लाती सीप में मोती बनाती हूँ मैं निर्मल एक बूँद हूँ II सागर से उठकर नभ में उड़ जाती वाष्प बन कर बादल बनाती एक होकर फिर वही सागर बन जाती …
हे! श्वेत कमलासिनीमाँ हंस वाहिनीमेरे जीवन के तम दूर करकोना-कोना उजाला से भर दो |हे! शारदे माँ, वर हमें ज्ञान का दो || हे अंबे! वीणापाणि ज्ञान प्रदान कारिणी हमारे अज्ञान हर कर अन्तःकरण विद्या से सम्पूर्ण कर दो | हे! शारदे माँ, वर हमें ज्ञान का दो ||हे! माँ भारतीसुधियों में पूजिनीनष्ट कर विघ्न बाधाहिंदी साहित्य श्रद्धा को उत्तीर्ण कर …
एक रात जब अँधेरे में ढिबरी जलायाखिड़की से चाँद को झाँकते पाया, बादलों से निकलते, छिपतेशायद मुझे चिढ़ा रहा थामुझे नहीं मालुम या बुला रहा था, पर मैं खुश था अपनी ढिबरी की रोशनी से,यह वही दीपक हैजो ज्ञान की बाती जलाईगूढ़ विषयों को बताई,जब भी आया तम का छायाहमेशा अपने साथ यह दीपक ही …
‘गणनया ज्ञानम्’ मम रचना सङ्ख्याविषये अस्ति I येन माध्यमेन प्रसिद्धवस्तूनां ज्ञानं भवति I सामान्यज्ञानं वर्धतैव -१: एकःजगात्येका माता वसुधा, पिता नभ:शशि: भास्करश्चास्ति एकैश्वर: Iचालयति जीवस्य जीवनमेक: प्राणः एका सङ्ख्या गण्यते सर्वप्रथमा I२: द्वौशरीरस्य स्तः आधारौ द्वौपादौ चलनाय, श्रवणाय कर्णौ,हस्तौ ग्रहणाय लेखनाय च नेत्रे द्रष्टुञ्चदम्पति: कुलवर्धनाय पालने च I३: त्रयःब्रह्माण्डे भवन्ति त्रयः लोका:ब्रह्मा विष्णु: महेशश्च सृष्टिकर्तारश्च,त्रिनेत्रधारकशिवं …
पतली लघ्वी देह मेंजेबों में, लघु संदूकों में,हर दफ्तर में उपस्थितसाक्षरता प्रतीक वाहिका हूँ I मैं लेखनी हूँ I नीले, काले, हरे, लाल रंगों मेंप्रति स्थान, पद रूप अनेक,नियम, नव निर्माण, संशोधनमानस पटल की उद्गार कर्तृ हूँ I मैं लेखनी हूँ Iहर परिक्षाओं की सहगामिनीजीवन में हर मोड़ पर साथी,सबके सुख-दुःख की कहानीकोरे पन्नों की …
मानवता कितनी जकड़ गईजो दिल्ली इतनी दहक गईशब्द कौन थे वे ?जिसने प्रज्ञा को मूढ़ बना दिया ?आज इंसान इंसानियत कीनीव में चिंगारी लगाए बैठा हैन जाने कौन से स्वार्थ मेंहै झुलस गया,संतुलन, संवेदना खो रहासब चिंतन, सिद्धांतजलाकर भस्म कर दिया |है चेतता जब कोईतेज तूफाँ गुजरता है अपने सिर सेतब चिल्ला-चिल्लाकरआजीवन आमरण अनशन परबैठ …
आजकल युवाओं में लक्ष्य के प्रति निश्चितता नहीं दिखाई देती है क्योंकि सोसल मीडिया उन्हें इतने सारे रास्ते दे दिया कि उन्हें समझ नहीं आता कि कौन-सा लक्ष्य उनके लिए सही है I उन्हें भटकने पर मजबूर कर दिया है I ऐसी ही समस्या को लेकर यह नाटक ‘भटकाव’ नाटक देश में फैले भ्रष्टाचार पर …
फिर खडा चोर हाथ जोड़ तुम्हारे द्वार आओ साथी, कमर बाँध लो हो जाओ तैयार IIजो वर्षों से चूसा तेरा रक्तअब आ गया है वह वक्त,हो जाओ कठोर और सख्तइस बार कर दो पलट तख़्त,न जीतने दो फिर इस बारआओ साथी, कमर बाँध लो हो जाओ तैयार II सालों सैर में किया केवल मद बर्बाद …
सब्जियों के संगलकठा या खुरमा लेकर बाजार से आते थे उस मिठाई का जायका सब लेते थे,पोते-पोतियों का दौड़कर आना हँसना, बातें करनाजो बुढ़ापे की राह के साथी थे,अब इम्तिहान आ गया था लाठियों का, बुढ़ापा गिर गया सहसा! एक दिन कूल्हा सरक गया, बोल दी एक बहू ने नहीं खिला पाऊँगी, अब मैं, दूसरी …







