लेखक: अविनाश कुमार राव


जिस दिन चाँद

इठला रहा होगा,
ईश्वर ने हूर का
गुरूर तोड़ने को
तुझे रच रहा होगा।


जिस महल में

तेरा वास होगा,
शायद अंधकार
हिमालय की गुफाओं में
छिप रहा होगा।

जब रात चाँद

निकलता होगा,
तुझे देखकर
शायद शर्म के मारे
बादलों में छिप रहा होगा।

जब तुम्हारा

बाग़ जाना होगा,
तुम्हारी मुस्कान देख
शायद गुलाब भी
मुरझा रहा होगा।

जब तुम्हें चलते

देखता होगा,
शायद हिरन
अपना मटकना
भूल गया होगा।

तुम्हारी हँसी को

हर कोई देखना चाहता होगा,
शायद इसलिए कि
रब ने पल्लवों पर
मोती जड़ा होगा।

वह सुनार भी

धन्य होगा,
जिसने तुम्हारे
कानों से लगे रहने का
स्वर्ण कुंडल रचा होगा।


श्रद्धा से:
अविनाश कुमार राव
संस्कृत हिंदी शिक्षक
दिल्ली पब्लिक स्कूल, फूलबाड़ी
जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल
मोबाइल: 7754054211
ईमेल: avinash.rao1234@gmail.com