भादों के पहले आए

आषाढ़ बिताकर जाए,
शिव के नाम से पावन है
माह वह समझो सावन है।

खेतों में हरियाली झूमे,

कजरी गीत सुनाए,
आते-जाते रिमझिम बूँदों से सुहावन है
माह वह समझो सावन है।

पक कटहल गमगम महके,

बागों में लंगड़ा-चौसा आम हैं लटके,
जब पेग लगाते झूले करते आमंत्रण हैं
माह वह समझो सावन है।

इंतजार है करती पूरे वर्ष बहन,

भाई से रक्षा को माँगती है प्रण,
भाई-बहन का रिश्ता रक्षाबंधन है
माह वह समझो सावन है।

भरे हुए हैं ताल, तलैया व झरने,

तारिणी तैर रही उफनाई नदियों में,
मोरों का होता सुंदर नर्तन दर्शन है
माह वह समझो सावन है।

वीर शहीदों का होता है गौरव गान,

लेते प्रण, झुकने न देंगे तिरंगे की शान,
आता जब वह स्वाधीनता दिन है
माह वह समझो सावन है।


श्रद्धा से:
अविनाश कुमार राव
हिंदी-संस्कृत शिक्षक
दिल्ली पब्लिक स्कूल, फूलबाड़ी
जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल
मोबाइल: 7754054211
ईमेल: avinash.rao1234@gmail.com