मानवता कितनी जकड़ गईजो दिल्ली इतनी दहक गईशब्द कौन थे वे ?जिसने प्रज्ञा को मूढ़ बना दिया ?आज इंसान इंसानियत कीनीव में चिंगारी लगाए बैठा हैन जाने कौन से स्वार्थ मेंहै झुलस गया,संतुलन, संवेदना खो रहासब चिंतन, सिद्धांतजलाकर भस्म कर दिया |है चेतता जब कोईतेज तूफाँ गुजरता है अपने सिर सेतब चिल्ला-चिल्लाकरआजीवन आमरण अनशन परबैठ …
भादों के पहले आएआषाढ़ बिताकर जाए,शिव के नाम से पावन हैमाह वह समझो सावन है।खेतों में हरियाली झूमे,कजरी गीत सुनाए,आते-जाते रिमझिम बूँदों से सुहावन हैमाह वह समझो सावन है।पक कटहल गमगम महके,बागों में लंगड़ा-चौसा आम हैं लटके,जब पेग लगाते झूले करते आमंत्रण हैंमाह वह समझो सावन है।इंतजार है करती पूरे वर्ष बहन,भाई से रक्षा को …