कविता

गणनया ज्ञानम्

‘गणनया ज्ञानम्’ मम रचना सङ्ख्याविषये अस्ति I येन माध्यमेन प्रसिद्धवस्तूनां ज्ञानं भवति I सामान्यज्ञानं वर्धतैव -१: एकःजगात्येका माता वसुधा, पिता नभ:शशि: भास्करश्चास्ति एकैश्वर: Iचालयति जीवस्य जीवनमेक: प्राणः एका सङ्ख्या गण्यते सर्वप्रथमा I२: द्वौशरीरस्य स्तः आधारौ द्वौपादौ चलनाय, श्रवणाय कर्णौ,हस्तौ ग्रहणाय लेखनाय च नेत्रे द्रष्टुञ्चदम्पति: कुलवर्धनाय पालने च I३: त्रयःब्रह्माण्डे भवन्ति त्रयः लोका:ब्रह्मा विष्णु: महेशश्च सृष्टिकर्तारश्च,त्रिनेत्रधारकशिवं …

लेखनी

मैं लेखनी हूँ

पतली लघ्वी देह मेंजेबों में, लघु संदूकों में,हर दफ्तर में उपस्थितसाक्षरता प्रतीक वाहिका हूँ I मैं लेखनी हूँ I नीले, काले, हरे, लाल रंगों मेंप्रति स्थान, पद रूप अनेक,नियम, नव निर्माण, संशोधनमानस पटल की उद्गार कर्तृ हूँ I मैं लेखनी हूँ Iहर परिक्षाओं की सहगामिनीजीवन में हर मोड़ पर साथी,सबके सुख-दुःख की कहानीकोरे पन्नों की …

प्रतीकात्मक चित्र

मानवता कितनी जकड़ गई

मानवता कितनी जकड़ गईजो दिल्ली इतनी दहक गईशब्द कौन थे वे ?जिसने प्रज्ञा को मूढ़ बना दिया ?आज इंसान इंसानियत कीनीव में चिंगारी लगाए बैठा हैन जाने कौन से स्वार्थ मेंहै झुलस गया,संतुलन, संवेदना खो रहासब चिंतन, सिद्धांतजलाकर भस्म कर दिया |है चेतता जब कोईतेज तूफाँ गुजरता है अपने सिर सेतब चिल्ला-चिल्लाकरआजीवन आमरण अनशन परबैठ …

चुनाव

आओ साथी, कमर बाँध लो हो जाओ तैयार |

फिर खडा चोर हाथ जोड़ तुम्हारे द्वार आओ साथी, कमर बाँध लो हो जाओ तैयार IIजो वर्षों से चूसा तेरा रक्तअब आ गया है वह वक्त,हो जाओ कठोर और सख्तइस बार कर दो पलट तख़्त,न जीतने दो फिर इस बारआओ साथी, कमर बाँध लो हो जाओ तैयार II सालों सैर में किया केवल मद बर्बाद …

VYAAKUL BUDHAAPAA

व्याकुल बुढ़ापा

सब्जियों के संगलकठा या खुरमा लेकर बाजार से आते थे उस मिठाई का जायका सब लेते थे,पोते-पोतियों का दौड़कर आना हँसना, बातें करनाजो बुढ़ापे की राह के साथी थे,अब इम्तिहान आ गया था लाठियों का, बुढ़ापा गिर गया सहसा! एक दिन कूल्हा सरक गया, बोल दी एक बहू ने नहीं खिला पाऊँगी, अब मैं, दूसरी …

shikashak

गुरु रूप ले लेता है शिक्षक |

पैरों में दृढ़ता, इच्छा शक्ति सशक्त, नित नूतन ज्ञान स्रोत परिभाषित है शिक्षक | कभी नारियल फल, ह्रदय सागर सदृश सरसता, उपमा आदर्श चरित्र का बन जाता है शिक्षक | हाथों में ले दुधिया भट्ठी, अक्षर दीप जलाता, कोरे मानस पटल पर अङ्कन करता है शिक्षक | न केवल का पुस्तक, जीवन का पाठ सिखाता, …

महिषासुर का शीष, चरणों में पाती हो II

महिषासुर का शीष, चरणों में पाती हो II

ईश्वर की सुंदर कृतिमातृ रूप परिभाषितजगज्जननी पर्याय क्यों दुखिता रह जाती हो ?यदा-यदा अत्याचार विरुद्धरौद्र रूप में हुई कटिबद्धदुर्गा, काली, रुप में आती होक्यों अबला कहलाती हो ? जिसने ही धरा पर अनेक नेक उत्कृष्टराम, मुहम्मद, यीशु, नानक, आज़ाद, भगतगांधी, विवेकानंद युगपुरुष जनतीक्यों तुम दूषित की जाती हो ?दादी, माता, नानी, दीदी, पत्नी, भगिनीरिश्तों की …

रोती होगी माँ धरती, आँचल अपनी फटती देख |

जहाँ एक है सूरज-चाँद का खेलअनोखा अनुपम प्रभा का मेल,हमजोली के आभा का खेललोकालोक दोनों का लक्ष्य एक,पर यहाँ मानव का वैचारिक भेदरोती होगी माँ धरती, आँचल अपनी फटती देख |थे जन्म समय सब में एक रक्त रंगखाया सबने एक ही अन्नएक प्रकृति में पले बढ़े,एक ईश्वर के कर नाम भेद हो धर्म नाम पर बटे …

जूते – एक अनुभव की कविता

पहने जाते हैं बड़े उत्साह से नये जूते,किसी के लिए निचले स्तर की रौंदने की चीज हैं जूते, हमारे पैरों को बचाते हैंकील, कीट, कीड़े, कीचड़ से फिर भी तुच्छ समझे जाते हैं जूते,हिमालय पर चढ़ने वालों से पूछिए कितने गम दबाए हैं जूते, हर पग पथ पर, साक्षी अनुभवों का ठोकरें खाकर आगे बढ़ने …